अक्षय कुमार की 'बेलबॉटम'
मोर्चा कोई भी हो, मौका कोई भी हो - काम का, दाम का अथवा दान का अक्षय कुमार 'केसरी' सदैव अग्रणी रहते हैं। वह काम को लेकर नखरे नहीं करते, स्पष्टवादी हैं, कट टू कट ... हाँ या ना। उन्हें पैड मैन बनाएं, बैड मैन बनायें या फिर सैड मैन .. नो समस्या। पर, काम ढंग का होना चाहिए, कुछ सकारत्मकता होनी चाहिए या मनोरंजन हो तो भी स्वस्थ, सर्वग्राह्य हो। लाभ हानि का गणित देखे बिना देश और अपनी पुराने रीति रिवाजों व सामाजिक सुधार विषयक फिल्मों को प्रसन्नभाव स्वीकारोक्ति देनेवाले बस दो ही कलाकार तत्पर रहते हैं - अक्षय कुमार और अजय देवगन। अपने स्टारडम के नखरों के पीछ नहीं चलते और ईश्वर की अनुकम्पा - चमकार चकाचौंध उत्पन्न कर जाती है। दोनों संयोगवश "सूर्यवंशी" में दिखेंगे।
इसमें अक्षय अस्सी के दशक में जायेंगे और बेलबॉटम सूट में मस्ती करेंगे। बेलबॉटम कैसा होगा, यह देखना है तो बस अमिताभ बच्चन अभिनीत "मजबूर" (१९७४) देख लीजिए। एक बार फिर अक्षय की फिल्म आरोपित हुई है। "बेलबॉटम" पर इसी शीर्षक से बनी कन्नड़ फिल्म का कथानक उड़ाने का आरोप है। जयतीर्थ के निर्देशन में बनी इस फिल्म में ऋषभ शेट्टी व हरिप्रिया की जोड़ी है। ऐसा 'एक्शन रीप्ले' में भी हुआ था। फिल्म भी ऐसी ही थी अतीत गामिनी और आरोप भी ऐसे ही थे।
"एक्शन रीप्ले" में टाईम मशीन की बात थी, अतीत में झांकने की तकनीक थी, सत्तर के दशक का आनन्द उठाने का अवसर था। अक्षय कुमार और ऐश्वर्या राय दोनों ही ने बड़े मनोयोग से काम किया था। पर, पोस्टर से ही आशंका उत्पन्न होने लगी थी, चलेगी नहीं। फिर भी विपुल शाह को साठ करोड़ में सिर्फ बारह का नुकसान हुआ। यह फिल्म साइंस फिक्शन का सहारा लेकर चलती रही पर, आइडिया झटकने के आरोप भी लगे थे। विपुल अमृतलाल शाह इसे इसी शीर्षक के एक गुजराती नाटक कि फिल्मांतरण बताते रहे, जो एच.जी. वेल्स के उपन्यास "द टाईम मशीन" से प्रेरित था। लेकिन, फिल्म पर हॉलीवुड की फिल्म "बैक टू द फ्यूचर" (१९८५) का प्रभाव स्पष्ट दीखा, जिसे रॉबर्ट ज़ेमेकिस ने निर्देशित किया था।
★ प्रस्तुति: उमेश सिंह चंदेल
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